
शिक्षा अधिकार आंदोलन जारी रखने का संकल्प दुहराया.
10 दिसंबर को पूरे राज्य में शिक्षा अधिकार-नागरिकता अधिकार मार्च का किया जाएगा आयोजन
28 नवंबर, 2019 पटना
बिहार में उच्च शिक्षा के सवाल पर आमरण अनशन पर बैठे रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री उपेन्द्र कुशवाहा से पीएमसीएच में जाकर आज माले के वरिष्ठ नेताओं ने मुलाकात की. टीम में भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो के सदस्य धीरेन्द्र झा, माले विधायक दल के नेता महबूब आलम और दरौली से माले विधायक सत्यदेव राम शामिल थे.
माले नेताओं ने रालोसपा नेता से अनशन समाप्त करने की अपील की. कहा कि शिक्षा जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण मसले पर भी बिहार सरकार का रवैया बेहद असंवेदनशील बना हुआ है. यह बेहद दुखद है कि सरकार का कोई भी प्रतिनिधि अनशन पर बैठे श्री कुशवाहा का हाल-चाल लेने तक नहीं आया है. आने वाले दिनों में शिक्षा अधिकार के सवाल पर बिहार में संपूर्ण विपक्ष एकताबद्ध होकर आंदोलन चलाएगा और सरकार को सबके लिए सस्ती शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए मजबूर करेगा.
माले राज्य सचिव ने यह भी कहा कि हमारी पार्टी ने आगामी 10 दिसंबर को पूरे राज्य में शिक्षा अधिकार दिवस मनाने का फैसला किया है. बेतहाशा बढ़ाई गई हाॅस्टल फीस के खिलाफ जेएनयू के छात्रों के आंदोलन ने शिक्षा के सवाल पर पूरे देश का राजनीतिक विमर्श बदल कर रख दिया है.. फीस वृद्धि वापसी से आगे बढ़कर इसने आज शिक्षा अधिकार आंदोलन का रूप ले लिया है. जेएनयू पर हमला भाजपा द्वारा गरीबों के अधिकारों पर जारी हमले की ही अगली कड़ी है. भाजपा द्वारा जेएनयू की जगह जिओ युनिवर्सिटी बनाने की कोशिशों ने उसका कारपोरेटपरस्त चेहरा उजागर कर दिया है. जाहिर है, आज देश के स्तर पर इसका विरोध हो रहा है.
10 दिसंबर को शिक्षा अधिकार के साथ-साथ नागरिकता अधिकार मार्च भी निकाला जाएगा. भाजपा द्वारा एनआरसी (नागरिकता का राष्ट्रीय रजिस्टर) योजना को पूरे देश में लागू करने की घोषणा से देश की जनता, खासकर गरीब, वंचित समुदाय के लोगों में भय-आतंक का माहौल बन गया है. असम में एनआरसी लागू करने का नतीजा देश के सामने है. नागरिकता सूची से 19 लाख 60 हजार लोगों को बाहर कर दिया गया है, जिसमें करीब 13 लाख हिंदू समुदाय के लोग हैं. नागरिकता-विहीन लोगों को डिटेंशन कैंपों (यातना शिविरों) में बंद कर उन्हंे सड़ाया-मारा जा रहा है. कैंपों में अभी तक 6 महीने के दुधमंुहे बच्चे से लेकर वृद्ध तक कुल 28 निर्दोष नागरिक मारे जा चुके हैं. एनआरसी की ही अगली कड़ी में धार्मिक भेदभाव पर आधारित नागरिकता संशोधन बिल लाया गया है जो नागरिकता के संबंध में संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ है. एनआरसी बांग्लादेशी घुसपैठिया के नाम पर देश में सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने की सोची समझी योजना है, जिसका शिकार देश के आम-अवाम और सभी जाति-समुदाय के गरीब व वंचित लोग होंगे. देश के कारोड़ों नागरिकों को नागरिकता-विहीन करने की इस साजिश को नाकाम करना होगा. नागरिकता से ही हमारे सारे अधिकार बनते हैं.